मनुष्य जन्म Birth के साथ ही मृत्यु Death की ओर अग्रसर होता है, लेकिन कब, कहां और कैसे मृत्यु होगी — यह सवाल सदियों से जिज्ञासा और भय का कारण बना हुआ है। वैदिक ज्योतिष (Vedic Astrology) में मृत्यु के समय का अनुमान लगाने के लिए विस्तृत विधियाँ दी गई हैं। यह लेख उन सभी प्रमुख नियमों, गणनाओं और संकेतों को स्पष्ट करता है, जिनसे मृत्यु का संभावित समय जाना जा सकता है।
“I’m not afraid of death; I just don’t want to be there when it happens.”
जीवन की श्रेणियाँ: अल्पायु, मध्यमायु और दीर्घायु
प्राचीन ग्रंथों में जीवन को तीन आयु वर्गों में बांटा गया है:
- अल्पायु (Short Life): 0 से 30 वर्ष तक। यदि कोई जातक अल्पायु होता है, तो जीवन के पहले 30 वर्षों में मृत्यु की संभावना अधिक होती है। यह समय परिवार के लिए अत्यंत चिंता का होता है।
- मध्यमायु (Middle Age): 30 से 60 वर्ष। इस अवधि में जीवन पर खतरा मध्यम रहता है, लेकिन पारिवारिक, स्वास्थ्य और व्यवसायिक चुनौतियाँ हो सकती हैं।
- दीर्घायु (Long Life): 60 से 90 वर्ष। इस चरण में मृत्यु की संभावना वृद्धावस्था और बीमारियों के कारण अधिक होती है।
अगर किसी की कुण्डली से यह पता चल जाए कि वह किस श्रेणी में आता है, तो उस वर्ग में आने वाले विशिष्ट वर्षों को विशेष ध्यान से देखा जा सकता है।
युगों के अनुसार आयु में परिवर्तन
जब कलियुग की शुरुआत हुई, तब मानव की औसत आयु 100 वर्ष मानी जाती थी। आज लगभग 5000 वर्ष बाद, यह औसत घटकर लगभग 90 वर्ष रह गई है। इसलिए आधुनिक काल में 90 वर्षों को सामान्य मानकर ज्योतिषीय गणनाएं की जाती हैं।
मृत्यु के संकेत देने वाले ग्रह और गोचर
1. शनि (Saturn) का गोचर
शनि को मृत्यु का दूत माना जाता है। जब यह निम्न स्थितियों में गोचर करता है, तो मृत्यु का खतरा बढ़ सकता है:
- गुलिक की राशि या उसकी त्रिकोण राशि में शनि का गोचर — यदि व्यक्ति की रात्रि में जन्म हुआ है।
- उपरोक्त से सप्तम राशि में शनि का गोचर — यदि दिन में जन्म हुआ है।
- चंद्रमा की नवांश राशि, त्रिकोण, अष्टम भाव या गुलिक से संबंधित राशि में गोचर।
शनि की यह गति लगभग 30 वर्षों में सभी राशियों में होती है। वह एक राशि में लगभग 2.5 वर्ष तक रहता है।
2. अष्टकवर्ग और शुद्ध पिंड (Ashtakvarga & Suddha Pinda)
शनि के अष्टकवर्ग में अगर उसके स्थान पर कम बिंदु हों, और वह किसी दुर्बल स्थान (जैसे अष्टम भाव) में हो, तो मृत्यु की संभावना बढ़ जाती है। शुद्ध पिंड को 7 या 8 से गुणा करके 27 से भाग देने पर प्राप्त शेषांक के अनुसार नक्षत्र निकाला जाता है। जब शनि उस नक्षत्र से गुजरता है, तब मृत्यु हो सकती है।
गुरु (Jupiter) का गोचर
जब गुरु निम्न में से किसी एक स्थिति में गोचर करता है, तब भी मृत्यु की आशंका होती है:
- शनि से तीसरे, पांचवें, छठे या ग्यारहवें भाव में।
- अष्टम भाव के स्वामी की राशि, नवांश या त्रिकोण राशि से।
- जन्म लग्न, चंद्र राशि या द्रेखाण स्वामी की राशि से।
- यदि बृहस्पति उस ग्रह की राशि से गुजरता है जो जन्म के समय की घड़ी का स्वामी हो।
सूर्य (Sun) का गोचर
सूर्य का गोचर भी मृत्यु का संकेत दे सकता है, जैसे:
- यदि सूर्य चल राशि में है और उसके द्वादशांश के स्वामी की राशि या त्रिकोण में प्रवेश करता है।
- स्थिर राशि में सूर्य हो और अष्टम भाव के स्वामी की राशि या उसके त्रिकोण में जाए।
- यदि सूर्य द्विस्वभाव राशि में हो और लग्नेश के नवांश या त्रिकोण में प्रवेश करे।
इसके अलावा सूर्य, शनि और गुलिक की दीर्घाएं जोड़कर जो राशि बनती है, उसमें जब सूर्य गोचर करता है, तो मृत्यु की संभावना होती है।
चंद्रमा (Moon) का गोचर
चंद्रमा जब निम्नलिखित राशियों से गुजरता है:
- सूर्य की राशि
- अष्टम भाव के स्वामी की राशि
- चंद्रमा, शनि और गुलिक की संयुक्त राशि
- चंद्रमा से द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, अष्टम, नवम और द्वादश भाव की राशियाँ
तो यह मृत्यु का संकेत बनता है।
64वां नवांश और मृत्यु का रहस्य
जन्म नवांश से 64वां नवांश, और जब वह राशि पूर्व दिशा से उदय हो रही हो — तब भी मृत्यु संभव है। इसी तरह, जब अष्टम भाव की राशि या न्यूनतम बिंदु वाली राशि उदित होती है, तो भी मृत्यु हो सकती है।
शत्रु ग्रहों से मृत्यु
यदि कोई ग्रह अपनी शत्रु राशि में प्रवेश करता है और वह राशि उस व्यक्ति की कुंडली में किसी रिश्तेदार (जैसे माता, पिता, पत्नी) से संबंधित कारक भाव में आती है, तो उस व्यक्ति के लिए संकट आ सकता है।
विशेष गणनाएं
पुत्र ग्रह की गणना
- सूर्य का पुत्र — शनि
- चंद्र का पुत्र — बुध
- प्रत्येक ग्रह के ‘पुत्र’ को दिन और गुलिक की स्थिति से निकाला जा सकता है।
यदि किसी संबंध (जैसे पिता) की मृत्यु जाननी हो, तो सूर्य और बुध की दीर्घाएं घटा कर जो राशि मिले, उसमें जब चंद्रमा गोचर करता है, तो पिता की मृत्यु हो सकती है। यही सिद्धांत अन्य ग्रहों पर भी लागू होता है।
सूक्ष्म गणना का तरीका
- किसी कारक ग्रह का शुद्ध पिंड निकालें
- उसे 7 से गुणा करें
- प्राप्त संख्या को 27 से भाग दें
- जो शेषांक आए, उसे अश्विनी नक्षत्र से गिनें
जब वह कारक ग्रह उस नक्षत्र से गुजरेगा, तब संबंधित व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है।
🌟 उदाहरण — एक काल्पनिक जन्मकुंडली के आधार पर मृत्यु का संकेत
जन्म विवरण:
- नाम: काल्पनिक जातक
- जन्म तिथि: 12 जुलाई 1980
- समय: प्रातः 4:30 बजे
- स्थान: वाराणसी, उत्तर प्रदेश
- लग्न: कर्क
- चंद्र राशि: तुला
- अष्टम भाव का स्वामी: शनि (मकर राशि में स्थित)
- गुलिक की स्थिति: वृश्चिक राशि में
🔭 प्रमुख ग्रह स्थिति और विचार:
- शनि की स्थिति: अष्टम भाव में स्थित है, जो जन्म से ही मृत्यु का संभावित कारक बनता है।
- गुलिक: वृश्चिक राशि में स्थित — शनि जब वृश्चिक या उसकी त्रिकोण राशि में गोचर करेगा, तो मृत्यु की संभावना बन सकती है।
- 64वां नवांश: यदि नवांश में चंद्रमा तुला राशि में है, तो 64वां नवांश मीन राशि बनता है। जब मीन राशि पूर्व में उदय होगी, तब भी मृत्यु की संभावना हो सकती है।
- अष्टकवर्ग में शनि के स्थान पर बिंदु: केवल 2 बिंदु — अति दुर्बल स्थिति दर्शाता है।
- दशा चल रही है: 75 वर्ष की आयु में ‘शनि महादशा’ और ‘राहु अंतर्दशा’ आरंभ होती है।
📅 संभावित मृत्यु वर्ष की गणना:
- शनि की महादशा + राहु की अंतर्दशा: मृत्यु कारक योग
- यदि शनि गोचर कर रहा हो वृश्चिक या मीन राशि से (गुलिक और 64वां नवांश)
- गुरु (बृहस्पति) भी यदि उस समय अष्टम भाव के स्वामी की राशि में गोचर कर रहा हो
➡ संभावित वर्ष: 2055 (जातक की आयु: 75 वर्ष)
निष्कर्ष
मृत्यु का समय जानना कठिन है, लेकिन वैदिक ज्योतिष में दिए गए संकेतों और गणनाओं से हम संभावित समय का पूर्वानुमान लगा सकते हैं। यह जानकारी किसी को भयभीत करने के लिए नहीं, बल्कि जीवन के प्रति सजग और आत्मिक दृष्टि से तैयार रहने के लिए होती है।
Disclaimer: यह लेख केवल शास्त्र और ज्ञान आधारित है। यह किसी की मृत्यु की भविष्यवाणी के लिए नहीं है, बल्कि ज्योतिषीय अध्ययन और शोध हेतु है।



