जन्म-कुंडली

जन्म कुंडली निर्माण (Construction of Kundali)

वैदिक ज्योतिष में कुंडली का निर्माण अत्यंत महत्वपूर्ण है। जन्म कुंडली, जिसे हम साधारण भाषा में जन्म कुंडली या राशि कुंडली कहते हैं, एक ऐसा चार्ट है जो व्यक्ति के जन्म समय और स्थान के आधार पर ग्रहों और राशियों की स्थिति को दर्शाता है। भारत में कुंडली को मुख्यतः दो प्रकार की शैलियों में बनाया जाता है—उत्तर भारतीय शैली और दक्षिण भारतीय शैली। इनके अलावा, बंगाली और ओडिशा में पूर्वी शैली तथा पश्चिमी और उत्तरी भारत में वृत्तीय शैली का भी प्रयोग किया जाता है, लेकिन यहां हम उत्तर भारतीय और दक्षिण भारतीय शैली पर ध्यान केंद्रित करेंगे।

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उत्तर भारतीय शैली की कुंडली (North Indian Style Kundali)

North Indian Kundali

उत्तर भारतीय कुंडली में भव स्थिर होते हैं और राशियां संख्या द्वारा दर्शाई जाती हैं। राशि चक्र की प्राकृतिक क्रमबद्धता के अनुसार, मेष (Aries) को 1 से, वृषभ (Taurus) को 2 से, और इसी प्रकार मीन (Pisces) को 12 से प्रदर्शित किया जाता है। कुंडली में पूर्व दिशा में उदित होने वाली राशि को लग्न (Ascendant) कहते हैं और यह हमेशा कुंडली के शीर्ष में लिखी जाती है।

विशेषताएं:

  1. भवों का स्थिर होना
    उत्तर भारतीय कुंडली में 12 भव स्थिर रहते हैं और राशियां उनकी स्थिति के अनुसार बदलती हैं। लग्न हमेशा शीर्ष पर होता है।
  2. त्रिकोण और केंद्र को पहचानना आसान
    उत्तर भारतीय कुंडली में त्रिकोण (Trine) और केंद्र (Square) को समझना आसान होता है, क्योंकि उनका स्वरूप स्पष्ट रूप से दिखता है।
  3. ग्रहों की दृष्टि को देखना सरल
    ग्रहों की दृष्टि (Aspects) और उनका प्रभाव इस कुंडली में आसानी से देखा जा सकता है।

दक्षिण भारतीय शैली की कुंडली (South Indian Style Kundali)

south Indian Kundali 1

दक्षिण भारतीय कुंडली में राशियां स्थिर रहती हैं और भव उनके सापेक्ष बदलते रहते हैं। 12 वर्गाकारों में बनी इस कुंडली में प्रत्येक वर्ग राशि का प्रतिनिधित्व करता है। कुंडली में मेष राशि हमेशा ऊपरी बाएं कोने से दूसरे वर्ग में होती है और राशियों का क्रम घड़ी की सुई के दिशा में चलता है।

विशेषताएं:

  1. राशियों का स्थिर होना
    दक्षिण भारतीय शैली में राशियां स्थिर रहती हैं और केवल लग्न की स्थिति से भव गिने जाते हैं।
  2. राशि दृष्टि को देखना सरल
    इस शैली में राशि दृष्टि (Rashi Aspects) का विश्लेषण करना आसान होता है।
  3. लग्न की पहचान
    लग्न वाले वर्ग को विशेष रूप से दो समांतर रेखाओं या “लग्न” शब्द से दर्शाया जाता है।

कुंडली की अन्य शैलियां

  1. पूर्वी शैली
    यह शैली मुख्य रूप से बंगाल और ओडिशा में प्रचलित है। इसमें राशियों और ग्रहों की स्थिति को एक विशिष्ट तरीके से दिखाया जाता है, जो उत्तर और दक्षिण भारतीय कुंडलियों से अलग है।
  2. वृत्तीय शैली
    यह शैली पश्चिमी और उत्तरी भारत में कभी-कभी उपयोग की जाती है। इसमें कुंडली को एक वृत्त के रूप में बनाया जाता है, जिसमें राशियां और ग्रह एक वृत्तीय संरचना में दर्शाए जाते हैं।

कुंडली का उपयोग और महत्व

कुंडली केवल ग्रहों और राशियों की स्थिति दिखाने का चार्ट नहीं है; यह व्यक्ति के जीवन की घटनाओं, स्वभाव, गुण, दोष, और भाग्य के बारे में जानकारी प्रदान करता है। यह तीन प्रमुख घटकों पर आधारित होती है:

  1. ग्रह (Planets)
  2. राशि (Zodiac Signs)
  3. भव (Houses)

कुंडली के प्रमुख उपयोग:

  1. जन्म कुंडली
    व्यक्ति के जन्म समय पर आधारित कुंडली।
  2. चंद्र कुंडली
    चंद्रमा को लग्न मानकर बनाई गई कुंडली।
  3. वराहमिहिर और पराशर शास्त्र के अनुसार कुंडली
    विशिष्ट योग और भविष्यवाणी के लिए विशेष लघ्न जैसे कि भाव लग्न, होरा लग्न और घटिका लग्न का उपयोग किया जाता है।

कुंडली शैली का चुनाव

कुंडली का चुनाव ज्योतिषी के अनुभव और उपयोग में सरलता के आधार पर किया जाता है। जहां उत्तर भारतीय शैली त्रिकोण और केंद्र देखने के लिए सरल है, वहीं दक्षिण भारतीय शैली राशि दृष्टि का स्पष्ट प्रदर्शन करती है। इसलिए, ज्योतिषी अपनी सुविधा और अभ्यास के अनुसार किसी भी शैली का चयन कर सकते हैं।

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निष्कर्ष

कुंडली निर्माण और विश्लेषण वैदिक ज्योतिष का आधार है। यह व्यक्ति के जीवन के हर पहलू का गहन अध्ययन करने का एक शक्तिशाली उपकरण है। उत्तर भारतीय और दक्षिण भारतीय कुंडली शैली दोनों की अपनी विशेषताएं और लाभ हैं। सही शैली का चयन और इसका अभ्यास ही ज्योतिषी को सटीक भविष्यवाणी करने में सक्षम बनाता है।

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