के.पी. ज्योतिष (कृष्णमूर्ति पद्धति) में विवाह और दांपत्य जीवन का विशेष महत्व होता है। विवाह, दांपत्य सुख, और तलाक से जुड़े विचारों के लिए अलग-अलग भावों को महत्व दिया गया है। निम्नलिखित विवरण में विवाह, परिवार का विस्तार, दांपत्य सुख, और अलगाव के लिए के.पी. ज्योतिष के अनुसार भावों और उनके स्वामी का विश्लेषण किया गया है।
के.पी. ज्योतिष में विवाह और तलाक के लिए भावों
(a) विवाह और परिवार के विस्तार के लिए महत्वपूर्ण भाव – 2, 7 और 11
- दूसरा भाव (परिवार और धन)
दूसरा भाव व्यक्ति के जीवन में परिवार, धन और वाणी का प्रतीक है। यह भाव विवाह के बाद परिवार में वृद्धि और पति-पत्नी के बीच वित्तीय समृद्धि का सूचक है। जब किसी व्यक्ति की कुंडली में दूसरे भाव का स्वामी शुभ ग्रहों से दृष्ट हो, तो यह व्यक्ति के वैवाहिक जीवन में आर्थिक स्थिरता और परिवार में शांति का संकेत देता है। दूसरे भाव का संबंध दांपत्य जीवन में आर्थिक सहयोग से भी होता है, जो एक अच्छे दांपत्य जीवन के लिए आवश्यक है। यह भाव न केवल परिवार की वृद्धि का प्रतीक है बल्कि यह यह भी दर्शाता है कि विवाह के माध्यम से व्यक्ति के जीवन में कितनी समृद्धि और खुशहाली आएगी। - सातवां भाव (पति/पत्नी और मुख्य विवाह भाव)
के.पी. ज्योतिष में सातवां भाव विवाह के लिए मुख्य भाव होता है। सातवां भाव जीवन साथी, पति-पत्नी के संबंध, दांपत्य सुख, और जीवनसाथी के साथ साझेदारी को दर्शाता है। यह भाव पति या पत्नी के साथ कानूनी और सामाजिक संबंधों को भी इंगित करता है। यह भाव व्यक्ति के जीवन में जीवनसाथी के रूप में स्थायित्व और पारस्परिक समझ की स्थिति को भी दर्शाता है। सातवें भाव का स्वामी और उसकी स्थिति कुंडली में यह दर्शाती है कि व्यक्ति का वैवाहिक जीवन कैसा रहेगा। यदि सातवें भाव का स्वामी शुभ ग्रहों से दृष्ट हो, तो यह वैवाहिक जीवन में स्थिरता और प्रेम का प्रतीक है। - ग्यारहवां भाव (इच्छाओं की पूर्ति और दोस्ती का स्थाई बंधन)
ग्यारहवां भाव के.पी. ज्योतिष में इच्छाओं की पूर्ति, लाभ और दोस्ती का भाव है। विवाह में, ग्यारहवां भाव पति-पत्नी के बीच स्थाई बंधन और एक-दूसरे के प्रति मित्रता का प्रतीक है। विवाह में केवल प्रेम नहीं, बल्कि मित्रता और एक-दूसरे का सहयोग भी अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। यह भाव दर्शाता है कि पति-पत्नी एक-दूसरे के प्रति कितने समर्पित हैं और एक-दूसरे के साथ कितनी सद्भावना और समझ रखते हैं। ग्यारहवें भाव का स्वामी और उसकी स्थिति कुंडली में यह दर्शाती है कि पति-पत्नी के बीच मित्रता का बंधन कितना स्थायी और मजबूत रहेगा।
विवाह में 7वें भाव का नक्षत्र स्वामी का महत्व
विवाह में सातवें भाव का नक्षत्र स्वामी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। के.पी. ज्योतिष के अनुसार, 7वें भाव के नक्षत्र स्वामी का प्रभाव व्यक्ति के विवाह की स्थिति, समय और जीवनसाथी के साथ संबंधों को दर्शाता है। सातवें भाव के नक्षत्र स्वामी की स्थिति से यह समझा जा सकता है कि विवाह में किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है और क्या विवाह में सफलता और संतुष्टि प्राप्त होगी।
(b) अलगाव या तलाक के लिए महत्वपूर्ण भाव – 1, 6 और 10
- पहला भाव (व्यक्तिगत जीवन और स्वभाव)
पहला भाव व्यक्ति का स्वयं का भाव होता है और यह व्यक्ति के आत्मनिर्भरता और स्वाभिमान का प्रतीक होता है। जब व्यक्ति के विवाह में संघर्ष उत्पन्न होता है, तो अक्सर उसका ध्यान व्यक्तिगत स्वतंत्रता और स्वाभिमान पर केंद्रित होता है। पहले भाव का संबंध व्यक्ति की अपनी भावनाओं और इच्छाओं से होता है, और यदि यह भाव मजबूत हो और सातवें भाव से टकराव में हो, तो यह विवाह में स्वतंत्रता की चाह और एकल जीवन जीने की इच्छा को बढ़ा सकता है। - छठा भाव (विवाद, संघर्ष और दुश्मनी)
छठा भाव विवाह में संघर्ष, विवाद और तलाक का प्रमुख भाव होता है। यह भाव यह दर्शाता है कि व्यक्ति के वैवाहिक जीवन में कौन-कौन सी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। छठे भाव का स्वामी यदि मजबूत है और अशुभ ग्रहों से दृष्ट हो, तो यह विवाह में विवाद, अलगाव और कानूनी समस्याओं का संकेत देता है। यह भाव पति-पत्नी के बीच दुश्मनी या एक-दूसरे के प्रति नकारात्मक भावना का संकेत है, जो तलाक के संकेतों को बढ़ा सकता है। - दसवां भाव (सार्वजनिक जीवन और समाज में स्थिति)
दसवां भाव व्यक्ति के सामाजिक और सार्वजनिक जीवन का प्रतीक है। तलाक या अलगाव की स्थिति में दसवां भाव इस बात को दर्शाता है कि व्यक्ति का समाज में क्या स्थान रहेगा और समाज में उसकी प्रतिष्ठा पर क्या प्रभाव पड़ेगा। दसवें भाव का स्वामी यदि छठे भाव से दृष्ट हो या अन्य अशुभ ग्रहों से प्रभावित हो, तो यह तलाक और सामाजिक प्रतिष्ठा के नाश का संकेत देता है। दसवें भाव की स्थिति यह भी दर्शाती है कि तलाक के बाद व्यक्ति का समाज में जीवन कैसे रहेगा।
विवाह और तलाक के लिए भावों का पारस्परिक संबंध
के.पी. ज्योतिष में विवाह और तलाक के लिए भावों का पारस्परिक संबंध अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। यदि विवाह के भाव (2, 7, 11) में अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो और तलाक के भाव (1, 6, 10) में शुभ ग्रहों का प्रभाव हो, तो व्यक्ति के वैवाहिक जीवन में संघर्ष की संभावना अधिक होती है।
- विवाह के लिए भावों का मेल: जब दूसरे, सातवें और ग्यारहवें भाव में शुभ ग्रहों का प्रभाव होता है और उनका आपसी संबंध अच्छा होता है, तो व्यक्ति का वैवाहिक जीवन सुखद और स्थिर रहता है।
- तलाक के भावों का असर: यदि पहले, छठे और दसवें भाव में अशुभ ग्रहों का प्रभाव होता है और विवाह के भाव कमजोर होते हैं, तो वैवाहिक जीवन में अलगाव या तलाक की संभावना बढ़ जाती है।
- सातवें भाव के नक्षत्र स्वामी का प्रभाव: विवाह में 7वें भाव का नक्षत्र स्वामी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यदि सातवें भाव का नक्षत्र स्वामी शुभ ग्रहों से दृष्ट है और इसका संबंध दूसरे, ग्यारहवें भाव से है, तो विवाह में स्थायित्व और सुख की संभावना रहती है।
निष्कर्ष
के.पी. ज्योतिष में विवाह और दांपत्य जीवन से संबंधित भावों का गहन विश्लेषण किया गया है। विवाह से जुड़े मुख्य भावों – दूसरा, सातवां, और ग्यारहवां – के आधार पर यह समझा जाता है कि विवाह के बाद व्यक्ति के जीवन में परिवार, आर्थिक स्थिरता, और दांपत्य सुख का विकास कैसे होगा। सातवां भाव विशेष रूप से विवाह का प्रधान भाव है और पति-पत्नी के बीच कानूनी, सामाजिक, और भावनात्मक संबंधों को इंगित करता है।
इसके विपरीत, तलाक या अलगाव की संभावनाओं का अनुमान पहले, छठे, और दसवें भावों के आधार पर लगाया जा सकता है। ये भाव व्यक्ति के वैवाहिक जीवन में चुनौतियों, विवादों, और समाज में उसकी स्थिति पर प्रभाव डालते हैं। सातवें भाव का नक्षत्र स्वामी भी विवाह में स्थायित्व और संतुष्टि के लिए मुख्य भूमिका निभाता है।
सारांशतः, के.पी. ज्योतिष में विवाह और दांपत्य जीवन की सफलता या असफलता का निर्धारण इन भावों की स्थिति, उनके स्वामी ग्रहों और नक्षत्रों के आधार पर होता है।