Vastu Purush Mandala having 45 Devtas and Asuras.
Aakash – the Inner Space: The energy field next to Bhrisha in the South-East direction is of blue colour. This is also known as Aakash, and represents the space (Aakash) present between Earth and heaven which grants (allows) life.
For example, a growing plant needs a part of space to grow. You sit inside a car which occupies a particular space. Similarly, if you sit inside a building then the space which is required for erection of that building is considered in the form of a devta – Antariksh. If that space (Antariksh) does not allow, then, this manifestation is not possible.
वेदों में विष्णु का वर्णन
ऋग्वेद, यजुर्वेद, और अथर्ववेद में विष्णु का अनेक बार उल्लेख मिलता है। वेदों में विष्णु को सर्वव्यापी (सर्वत्र विद्यमान) देवता के रूप में वर्णित किया गया है। “वेवेष्टि व्याप्रोति इति विष्णुः” का अर्थ है कि वह जो सब कुछ आवृत करता है, वही विष्णु है।
तीन पगों की महिमा
विष्णु का सबसे प्रसिद्ध कार्य तीन पगों से पूरे विश्व को नापने का है।
- यजुर्वेद में कहा गया है कि विष्णु ने तीन पग रखे, जिनमें सारा संसार समा गया।
- एक अन्य मंत्र में यह बताया गया है कि विष्णु ने द्युलोक (स्वर्ग) और पृथ्वी को स्थिर किया हुआ है।
- इन तीन पगों का प्रतीकात्मक अर्थ प्रातःकाल, मध्याह्न, और सायं\u2014सूर्योदय से सूर्यास्त तक का काल है। इस दृष्टिकोण से यह कहना कि विष्णु ने तीन पगों से विश्व को नापा, सूर्य की गति का प्रतीक है।
त्रिभुज और तीन पग
एक अन्य व्याख्या के अनुसार, सारा ब्रह्मांड एक विशाल त्रिभुज के रूप में है:\n- त्रिभुज की तीन भुजाएँ हैं\u2014पृथ्वी, अंतरिक्ष, और द्युलोक।
- विष्णु इस त्रिभुज की हर भुजा में व्याप्त हैं।
- यजुर्वेद का मंत्र इस बात को और स्पष्ट करता है:
“यस्योरुषु त्रिघु विक्रमणेघु-अधिक्षियन्ति भुवनानि विश्वा।”
(यजुर्वेद 5.20)
इस त्रिभुज के तीन बिंदु\u2014द्युलोक, पृथ्वी, और अंतरिक्ष\u2014ही विष्णु के तीन पग माने गए हैं। यजुर्वेद के एक अन्य मंत्र में कहा गया है:
“दिवो वा विष्ण उत वा पृथिव्या महो वा विष्ण उरोरन्तरिक्षात्।”
(यजुर्वेद 5.19)
यह स्पष्ट करता है कि विष्णु का अस्तित्व इन तीनों लोकों में है और सूर्य के आकर्षण से उनकी स्थिति स्थिर रहती है।
आध्यात्मिक अर्थ और परम पद
विष्णु को आध्यात्मिक दृष्टि से परमात्मा के प्रतीक के रूप में देखा गया है।
- विष्णु का परम पद (सर्वोच्च स्थान) वह अवस्था है जिसे योगी और ज्ञानी प्राप्त कर सकते हैं।
- यह परम पद मोक्ष का प्रतीक है, जहाँ ब्रह्मानंद (आनंद की चरम अवस्था) का अनुभव होता है।
- यजुर्वेद और गीता दोनों में इस परम पद को विष्णु का परम धाम कहा गया है:
“तद धाम परमं मम।” (गीता 8.21) - यह योग की चरम अवस्था है, जिसे धर्ममेघ समाधि (योगदर्शन 4.29) कहा जाता है।
विष्णु और ब्रह्मानंद
वेदों में विष्णु के परम पद का वर्णन आनंदमय अवस्था के रूप में किया गया है।
- इस अवस्था को मधु के स्रोत के रूप में वर्णित किया गया है, जहाँ ब्रह्मानंद का झरना बहता है।
- यह वह स्थिति है जहाँ केवल आनंद ही आनंद है।
विष्णु का महत्व
विष्णु की उपासना केवल एक देवता के रूप में नहीं, बल्कि ब्रह्मांडीय ऊर्जा और आध्यात्मिक चेतना के प्रतीक के रूप में की जाती है।\n- उनके तीन पगों का प्रतीक हमें जीवन की स्थिरता और संतुलन की शिक्षा देता है।
- उनकी सर्वव्यापकता इस बात का संकेत है कि परमात्मा हर जगह, हर रूप में उपस्थित है।
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